सच्ची-मुच्ची बारिश...???
हाँ मेरे दोस्त वही बारिश...

वही बारिश जो आसमान से आती है, बूंदों में गाती है, पहाड़ों से फिसलती है, नदियों में चलती है, लहरों में मचलती है, कुए-पोखर से मिलती है, ख़बरेलों पर गिरती है, गलियों में फिरती है, मोड़ पे संभालती है, फिर आगे निकलती है...
वही बारिश..

ये बारिश अक्सर गीली होती है, इसे पानी भी कहते है...
उर्दू में आब, मराठी में पाणी, तमिल में तन्नी, कन्नड़ में नीर और बंगला में इसे जोल भी कहते है... संस्कृत में जिसे वारी, नीर, जीवन, पए, अमृत, बुद, अंबु भी कहते है,
ग्रीक में इसे νερό, अंग्रेजी में water, फ्रेंच में l'eau और चेमिस्ट्री में H2O कहते है..

ये पानी जब आँख से ढलता है तो आँसू कहलाता है लेकिन चेहरे पे चढ़ जाये तो रुबाब बन जाता है.... कभी कभी ये पानी सरकारी फाइलों में अपने कुए समेत चोरी भी हो जाता है...

पानी तो पानी है, पानी ज़िंदगानी है, इसलिए जब रूह की नदी सुखी हो, मन का हिरन प्यासा हो, दिमाग़ में लगी हो आग और प्यार की गागर ख़ाली हो,
तब मैं हमेशा ये बारिश नाम का गीला पानी लेने की राय देता हूँ..

मेरी मानिए तो ये बारिश खरीदिये...सस्ती, सुंदर टिकाऊ बारिश सिर्फ ५००० रुपये में
इससे कम में कोई दे तो चोर की सज़ा हो, मेरी आपकी जुती सीर पर मेरी, मेरी बारिश खरीदिये...
(I had written the small solo piece by Nana Patekar that he narrates in the film.. its a beautiful depiction of the rains (and ofcourse in context with the story line of the film))

(THODA SA RUMANI HO JAE)

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